You are currently viewing गोलगप्पा और अरस्तु?! एक समीकरण

गोलगप्पा और अरस्तु?! एक समीकरण

प्यारे दोस्तों, शीर्षक देख के आपके मुँह में पानी ज़रूर आया होगा. लाज़मी है, आखिर लिखते वक़्त मेरे भी मुँह में सावन-भादों जैसा ही मौसम था. यकीन मानिये, आज सुबह के पहले मेरे खयालों में भी कभी गोलगप्पो का विवरण फ़ूड ब्लॉग्गिंग से आगे का नहीं था. आज सुबह फेसबुक पर मेरे पतिदेव की एक महिला सहकर्मी  ने एक व्यंगात्मक स्टेट्स डाला था, जिस की छवि नीचे है

इसको देख कर मैं अनायास ही गहरी सोच में पद गयी. क्या ये वाकई में एक व्यंगात्मक टिपण्णी ही थी या हमारे जीवन का फलसफा? मुझे ऐसा लगने लगा है के यूनान के मशहूर दार्शनिको में से एक, अरस्तु जिन्हे हम अरिस्टोटल के नाम से भी जानते है , गोलगपो  के रूप में उनके आदर्शों ने पुनर्जन्म लिया है.

आइये ,मैं आपसे अपने विचार साझा करती हूँ.

थोड़ा है और उतने की ही जरूरत है

दफ्तर से वापिस आते समय भूख का माहौल पेट के रंगमंच पर तांडव करता है. खैर, डिनर का GPS तीन घंटे की दूरी दिखाता है तो लगता है के ४-५ प्लेट गोलगप्पे तो पार ही कर जाउंगी आज. मेट्रो स्टेशन से गोलगप्पे वाले भैया की रेहड़ी तक हिमा दस से भी तेज पहुँचती हूँ मैं. “भैया, कच्चा प्याज मत डालना, सौंठ बढ़िया से और आटें के छोटे साइज के गोलगप्पो का प्रोग्राम स्टार्ट करिए”, कहते हुए डोना लेकर खड़ी हो जाती हूँ मैं. गोलगप्पे का वो  पहला कौर जैसे मेरी आत्मा को तृप्त कर देता है, चार- पांच गोलगप्पो के बाद जा के पेट का नंबर आता है. और दसरी प्लेट किसी तरह से खत्म होते-होते न जाने क्यों टिश्यू पेपर मांग लेती हूँ मैं. क्या आपको ऐसा नहीं लगता की वास्तविक जिंदगी में भी हमारी ख्वाहिशे, हमारी जरूरतों से कही ज्यादा होती है? एक 2BHK फ्लैट भी उतना ही सुख़ दे सकता है जितना एक कंडीमोनियम. एक Honda Amaze भी उतना बेसिक कम्फर्ट दे ही देती है जितने की हमें वाकई में जरुरत होती है. क्या ‘ जो प्राप्त है वो पर्याप्त है’  हमारी सबसे भारी विडम्बना बन गयी है या इस कन्फूशन से आगे भी कोई जहां है?

 

‘मिज़ाज़ यूँही न चिड़चिड़ा कीजिये, कुछ बातें छोटी करे तो दिल बड़ा कर लिजिये’- The Secret

 

हमें कुदरत से कभी भी कुछ कम नहीं मिलता, गोलगप्पे वाले की रेहड़ी पर भी कुछ ऐसा अनुभव आप सभी ने किया होगा. क्या आपके साथ भी ऐसा नहीं हुआ है के ये पूछने पर के, “भैया, कितने गोलगप्पे हुए?”, तो हमेशा जवाब मिलता है अभी एक और बाकी है? अरस्तु के आदर्शों के अनुसार भी ‘The whole is more than the sum of its पार्ट्स.’  गोलगप्पे भी हमें शायद यही सीख देते है के सृष्टि ने हमारे जरूरतों के लिए पर्याप्त संरचना करी हुई है और हमारी जरूरतों को भली भाँती पूर्ण किया जा सकता है, अपितु लालच आहा लपलप का कोई समाधान नहीं होता है. जैसा के फेसबुक वाली महिला लिखती है के कई बार ऐसा हो जाता है के गोलगप्पो की सप्लाई-डिमांड mismatch हो जाता है, मुझे ऐसा लगता है के कभी कभी भगवान भी हमारी क्षमता से ज़्यादा देते है, बस एक सही नजरिया चाहिए चीज़ो को देखने का. आपका क्या विचार है? देने वाला जब भी देता, देता छप्पर फाड़ के!!

 

सूखी पूरी- The End

‘हमारी फिल्मों की तरह अंत तक हमारी जिंदगी में भी सब कुछ ठीक थक सा हो जाता है’. ॐ शांति ॐ के इस संवाद से कौन अपरिचित होगा? लास्ट में हासिल होने वाली वो मुफ्त की सूखी पूरी, जिसमें गोलगप्पे वाला भैया अपने मास्टरशेफ होने का सारा हुनर दिखाते हुए मसाले,चाट मसाला, निम्बू से लिप्त करता है. वो सूखी पूरी का स्वाद अक्सर मैंने गोलगप्पो की पूरी प्लेट से ज्यादा लज़ीज़ पाया है.

जैसा के हमारी जिंदगी में भी हम चाहते है की हम बेरोजगार न रहे, पर उसके साथ के अच्छा बॉस, समय पर आती सैलरी और वर्क-लाइफ बैलेंस मिल जाये तो क्या बात है!! यकीं मानिये, अगर आज इन सब में से किसी एक की कमी आप महसूस कर रही है, तो शीघ्र ही वह दिन भी आएगा जब नौकरी का लुफ्त उस सूखी पूरी जैसा ही मिलेगा. अंत तक फिल्मों की तरह सब कुछ ठीक ठाक हो ही जायेगा. जब हम मांग-मांग के हार मान चुके होते है तो वास्तविकता में कुछ न कुछ जरूर एक्स्ट्रा मिल ही जाता है.

गोलगप्पो की भिन्न भिन्न शक्लें- अनेकता में एकता

गोलगप्पों ने अपना स्थान पूरी दुनिया में बनाया है. हमारे देश में ही ले लीजिए. कई जगहों पर गोल गप्पे का पानी बर्फीला ठंडा होता है, जैसे के दिल्ली और राजस्थान.  अगर आपने कभी पूना में पानीपूरी का लुत्फ़ उठाया हो तो आप जानती ही होंगी के वहा पर तवे पर फूलगोभी गरम, मैश करी हुई मिलती है. कही पर आलू का सच्चा साथी मटर होता है, जैसे के वेस्ट बंगाल और कही पर पेटिस का आलू भरा जाता है! दिल्ली में यह वैरायटी तो पूरी में भी पायी जाती है. आटे और सूजी- दोनों प्रकार की पूरिया बनती है. और मज़ा तो मथुरा की चाट में  मिलता है. जहा वृन्दावन में पूरिया भी रंग-बिरंगी होती है! नवाबो के शहर लखनऊ का अनुभव आपसे शेयर करुँ तो वहाँ पानी अलग-अलग रंगो के और फ्लेवर के मिलते है! प्रकार, स्वाद के साथ साथ नामो में भी भिन्नत्ता है. बंगाल में फुचका, लखनऊ में पानी के बतासे, नागपुर में गुपचुप, दिल्ली में गोलगप्पे और आमची मुंबई में इन्हे पानीपूरी के नाम से जाना जाता है. हमारे जीवन में भी कई रंग है और कई विविधताएं. क्या आपको ऐसा नहीं लगता के एक रंग कम् पड़ने से जीवन की खुशियों की रेलगाड़ी रुकनी नहीं चाहिए. एरिस्टोटल के हिसाब से भी ‘Happiness depends upon ourselves’ कुछ ऐसा ही था.

 

तो मस्त रहिये, व्यस्त रहिये और जितना ज़िन्दगी ने परोसा है, उसका स्वाद लीजिए! सूखी पूरी तो मिलेगी ही, पर उसके इंतज़ार में क्षणिक सुखो की तिलांजलि मत दीजिये.

 

लेख अच्छा लगा हो या नहीं, आज शाम को गोलगगप्पें ज़रूर खा के आईये.

This Post Has 34 Comments

  1. lifewithmypenguin

    Food for thoughts. A gol gappa giving so much insight is really philosophical.

    1. My Words My Wisdom

      Thanks Dear, someimes small things in life hold greater meaning 😁

  2. urbamom

    So much of insight at a time, love the correlation between. Bahut dino se golgappa nahi khaya

  3. Sweetannu

    Apki tulna Mahaan hai, aur likne ka andaz nirala. Stay blessed dear.

      1. Rahul Prabhakar

        I am a sucker for golgappe. Bachpan se hi kuch aadatein hai jo abhi bhi barkarar hai … Kabhi mithi chutney ke saath to kabhi tikhi chutney ke saath, golgappe remain first love.

        https://www.rahulprabhakar.com

  4. Meher

    What an analogy.,
    Puri zindagi ka Saar aagaya gol gappe me

  5. Blogaberry Foo

    I love Pani Puri … It’s my favourite Chaat ..

  6. prakharkasera

    Gol gappe is like a past, present and future for me…present in all the phases, bringing sparkles

  7. Gayatri

    Loved reading ur post. Never thought a golgappa can teach us such an important life lesson.

  8. delhifundos2014

    I really enjoy reading your post. And this article is very interesting. I am Gol Gappa lover. And as Gayatri said I also never thought that a golgappa teaches us an important lesson.

    1. My Words My Wisdom

      Glad you liked it, and who doesn’t like golgappas? 😁 we all do right

  9. Shilpa Garg

    These are some deep and profound life lessons from the humble gol gappa. Loved reading and soaking the insights.

  10. TripleAmommy

    Ha ha enjoyed reading your post. The language was nice and fun! Read in Hindi after a while.

  11. Snehal

    Aisa toh m ne kbhi socha he nai 😃 ab har gol gappe p yeh article zarur yaad aayega!

  12. PrettyMummaSays

    पढ़कर बहुत ही मज़ा आया । गोल गप्पों से ज़िंदगी का सार निचोड़ना – वाह !

  13. Varsh

    Loved this post, Ujjwal. Who knew golgappe had such a deep philosophical thought behind them?

  14. romagptasinha

    Loved the analogy Ujjwal and honestly I myself would have never derived so much imputation for Read life from golgappa👌👌

  15. MeenalSonal

    Ujjwal, I liked the way you compared the Golgappe with life events. And ofcourse tuning with some persons is so required to move on smoothly. I liked your hindi blog post, looking forward for more such hindi posts.

    1. My Words My Wisdom

      It’s tough to write in shudha hindi….😁 Thanks for your encouraging words

  16. Amrit kaur

    Nice thoughts shared with golgappas as life moments. You compared it well and wrote so perfectly in hindi.

  17. alpanadeo

    that was a different shade of your writing Ujjwal but as always enjoyed it. Being a Golgappa lover, that featured image definitely gave me a good and tempting start. The kind of relation you have described in your post is something I have never thought of. But now I am sure whenever I will eat Gol Gappe, that last line ek our bachata hai will definitely make me recall your post. 🙂

  18. prismaroundgurjeet

    aapne to gol gappe pe pura atma katha k gyan de dala,zindagi ka kuch khaata to kuch meethe k anubhav kara dala. gol gappe nahi ab to article yaad ayega mujhe

  19. Aurora M

    I simply loved your post ! Es golgappe ki kahani hum Kya jaane janaab…itna sab kuch sikha jayege soocha na tha…

Leave a Reply